समलैंगिकता पर मनोज भावुक के गीत

जुलाई 5, 2009

इ आज के डिमांड बा रउरा ना बुझाई
नर नर संगे, मादा मादा संगे जाई

हाई कोर्ट देले बाटे अइसन एगो फैसला
गे लो के मन बढल लेस्बियन के हौसला
भइया संगे मूंछ वाली भउजी घरे आई
इ आज के डिमांड बा रउरा ना बुझाई

खतम भइल धारा अब तीन सौ सतहत्तर
घूमतारे छूटा अब समलैंगिक सभत्तर
रीना अब बनि जइहें लीना के लुगाई
इ आज के डिमांड बा रउरा ना बुझाई

पछिमे से मिलल बाटे अइसन इंसपिरेशन
अच्छे भइल बढी ना अब ओतना पोपुलेशन
बोअत रहीं बिया बाकि फूल ना फुलाई
इ आज के डिमांड बा रउरा ना बुझाई

Decriminalization of homosexuality

Decriminalization of homosexuality


www.manojbhawuk.com

जुलाई 28, 2007

Welcome to Manoj Bhawuk’s Own Website!

Bhojpuri Poet, Writer, and Film-critic.


जिनगी

जनवरी 7, 2007

उनका के हमेशा हँसत देखनी
……… …………… दूर से
आ रोअत ……………………
नजदीक से।
कहीं उनकर नाम
‘ जिनिगी’ त ना ह ।
————-


सेंटीमेंटल ब्लैकमेलिंग

जनवरी 7, 2007

केतना नाजुक होला
भावुकता के क्षण ।
आदमी उगिल देला सब
लइका लेखा।
कवनो कसाई मन
ओमे से
उचिला लेला………
अपना मतलब के बात ।
साइत एही के कहल जाला
सेंटीमेंटल ब्लैकमेलिंग ।


संस्कृति

जनवरी 7, 2007

एक ओर
कुकुरमुत्ता नियर फइलल
भकचोन्हर गीतकारन के बिआइल
कैसेट में
लंगटे होके नाचत बिया
भोजपुरिया संस्कृति।
(……जइसे उ कवनो
कोठावाली के बेटी होखे……भा
कवनो गटर में फेंकल मजबूर
लइकी के नाजायज औलाद ।)

दुसरा ओर,
लोकरागिनी के किताब में कैद भइल
भोजपुरिया संस्कृति के दुलहिन के
चाटत बा दीमक ,सूंघत बा तेलचट्टा
आ काटत बा मूस।
आ एह दू नू का बीचे
भोजपुरी के भ्रम में हिन्दी के सड़ल
खिचड़ी चीखत आ
भोजपुरिये के जरल भात खात
मोंछ पर ताव देत
‘मस्त-मस्त ‘ करत
खाड़ बा , भोजपुरिया जवान


भोजपुरी के दुर्भाग्य

जनवरी 7, 2007

राउर चिट्ठी पढ़ के
मन बहुत खुश भइल।
रउरा जापान में वैज्ञानिक बानी।

जापान जाके भी ,
रउरा भोजपुरी याद बा ??
लोग त दिल्ली जाते
भोजपुरी भुला जाला !

रउरा वैज्ञानिक बानी,
माडर्न टेक्नोलाजी के विद्वान
तबो रउरा भोजपुरी याद बा ???
लोग त चपरासी बनते
भोजपुरी भुला जाला ।

पता ना ई लोग
अपना माई-बाप के
कइसे याद रखत होई?


गरीबी

जनवरी 7, 2007

गरीबी !
ना हँसे देले ना रोवे
ना जीये देले ना मूए
साँप- छुछुंदर के गति क देले
पागल मति क देले
खोर-खोर के खाले


मजबूर क देले आदमी के ——–
आग प चले खातिर,
गदहा के बाप कहे खातिर,
आ दुधारू गाय के लात सहे खातिर ।


 


इंतजार

जनवरी 7, 2007

जेठ के दुपहरिया में
खटत बा ……….


……… एह उमेद पर
कि एक दिन सावन आई
त मन के धरती हरियरा जाई ।
बाकिर…..

हाय रे हमार पागल परान
घाम में जर के राख भइल
राह निहारत लाश भइल……
आ अब ………

एह फसल खातिर
का सावन ….. का भादो ?


अबकी आवे अइसन नयका साल

अक्टूबर 2, 2006

अबकी आवे अइसन नयका साल
हो जाये हर गाँव-शहर खुशहाल
भइया के मुँह से फूटे संगीत
भउजी के कंगना से खनके ताल

आवे रे आवे अइसन मधुमास
फूल खिलावे ठूंठ पेड़ के डाल

झूम-झूम के नाचे मगन किसान
एतना लदरे जौ-गेहूँ के बाल ।

दिन सोना के चाँदी के हो रात
हर अँगना मे अइसन होय कमाल

मस्ती मे सब गावे मिल के फाग
उड़े प्रेम के सगरो रंग-गुलाल

लौटे रे लौटे गाँवन मे गाँव
फेर जमे ऊ संझा के चौपाल

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